सालासर बालाजी या सालासर धाम भगवान हनुमान जी के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थान है। यह भारत के राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। हर साल चैत्र (मार्च-अप्रैल) और अश्विन (सितंबर-अक्टूबर) के महीनों के दौरान बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। हनुमान मंदिर सालासर शहर के ठीक बीच में स्थित है
सालासर क्यों प्रसिद्ध है
पूरे भारत में एक मात्र सालासर में दाढ़ी मूछों वाले हनुमान यानी बालाजी स्थित हैं। इसके पीछे मान्यता यह है की मोहनराम को पहली बार बालाजी ने दाढ़ी मूंछों के साथ दर्शन दिए थे। मोहनराम ने इसी रूप में बालाजी को प्रकट होने के लिए कहा था। इसलिए हनुमान जी यहां दाढ़ी मूछों में स्थित हैं।
सालासर बालाजी मंदिर का महत्व
भगवान हनुमानजी को समर्पित भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर सिंदूर चढ़ा हुआ है। पूर्णिमा के दिन यहां आने वाले सभी भक्तों की मुरादें पुरी होती हैं। लोग मंदिर में स्थित एक प्राचीन वृक्ष पर नारियल बांध कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की अभिलाषा करते है।
मुसलमान कारीगरों ने किया मन्दिर निर्माण
सालासर बालाजी के मन्दिर के लिए आसोटा से बालाजी की प्रतिमा लेकर आने वाले बैल जहां रूके वहां बालाजी पर बालाजी का मन्दिर बनवाने के लिए मुसलमान कारीगरों को बुलवाया गया। बताया जाता है कि जुलियासर ठाकुर जोरावरसिंह के अदीठ रोग होने पर बालाजी बाबा का बुंगला बनाने के लिए फतेहपुर से मुसलमान कारीगर नूर मोहम्मद व दाऊ नामक कारीगरों को बुलाकर बुंगला बनवाया।
सालासर बालाजी की कथा
राजस्थान सीकर के रुल्याणी गांव के निवासी लछीरामजी पाटोदिया के सबसे छोटे पुत्र मोहनदास बचपन से ही श्री बालाजी भगवान के भक्त थे। हर पल बालाजी के सतसंग और पूजन-अर्चन में लगे रहते थे। मोहनदासजी की बहन कान्ही का विवाह सालासर गांव में हुआ था।कुछ महीनो के बाद कान्ही ने उदय नामक एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र उदय के जन्म के कुछ समय पश्चात् ही उसके पति की मृत्य हो गई। मोहनदास जी अपनी बहन कान्ही और भांजे का खेती में हाथ बटाने के लिए सालासर आकर उनके साथ रहने लगे। उनकी मेहनत से कान्ही के खेत सोना उगलने लगे।
दिन बीतते गए मोहनदासजी जी रात दिन बालाजी के भक्ति में लीन रहने लगे।लोग उन्हें बावलिया कहने लगे। कान्ही ने सोचा कि मोहनदास का विवाह करवा देते हैं, फिर सब ठीक हो जाएगा। यह बात मोहनदास को पता चली तो उन्होंने कहा कि जिस कन्या से मेरे विवाह की बात चलाओगी, उस कन्या की मृत्यु हो जाएगी। और सच में ऐसा ही हुआ। जिस कन्या से मोहनदास के विवाह की बात चल रही थी, उस कन्या की अचानक मृत्यु हो गई। तब से मोहनदास जी ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और बालाजी के भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करने लगे।
एक दिन शनिवार को एक चमत्कार हुआ। नागपुर जिले में असोटा गाँव का एक जाट किसान अपने खेत को जोत रहा था। एकाएक हल का फल किसी वस्तु से टकराया। उसने खोदकर देखा तो वहां मिट्टी में सनी हुई मूर्ति मिलीं। उसकी पत्नी उसके लिए भोजन लेकर वहाँ पहुँची। किसान ने अपनी पत्नी को मूर्त्ति दिखायी। उन्होंने अपनी साड़ी से मूर्त्ति को साफ़ कीया। मूर्ति की मिट्टी साफ की तो वहां श्रीहनुमानजी की दिव्य मूर्ति के दर्शन हुए।यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री हनुमानजी की थी।भगवान बालाजी के प्रकट होने का यह समाचार तुरन्त असोटा गाँव में फ़ैल गया। असोटा के ठाकुर ने भी यह खबर सुनी। बालाजी ने उसके सपने में आकर उसे आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले में सालासर में स्थापित कर दिया जाए। उसी रात मोहन दासजी महाराज ने भी अपने सपने में भगवान हनुमान यानि बालाजी को देखा। भगवान बालाजी ने उनको असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। सुबह ठाकुर व अनेक ग्रामवासियों ने मोहनदास जी के साथ मूर्ति का स्वागत किया और शुक्ल नवमी को शनिवार के दिन पूर्ण विधि-विधान से हनुमान जी की मूर्ति की सालासर में स्थापना की गई।इसी जगह को आज सालासर धाम के रूप में जाना जाता है।
बाबा मोहन दास जी की समाधि – श्री सालासर बालाजी मंदिर
यहां मंदिर के अंदर ही बाबा मोहन दास जी की समाधि है। ऐसा माना जाता है कि इनके दर्शन किए बगैर सालासर बालाजी महाराज के दर्शन पूर्ण नहीं माने जाते हैं। अगर आप भी यहां आए तो एक बार इस समाधि के दर्शन जरूर करके जाए। मोहन दास जी महाराज अपने बाल समय से ही साधु थे और अपनी बहन के परिवार को पालने के लिए इस सालासर नामक ग्राम मे आए थे। ये सदैव हनुमान जी की भक्ति में लीन रहते थे। जब बालाजी महाराज की यहां स्थापना हो गयी उसके कुछ समय बाद उनकी बहन का देहावसान हो गया। जहां उनकी बहन का देहावसान हुआ उसके बराबर में ही इन्होनें भी जीवन समाधि ले ली।
ये अपनी बहन की सेवा के लिए यहां आए थे और बहन की सेवा के लिए ही आज तक यहां है। वो समाधि रूप में आज भी यहां विराजमान हैं और इन्होंने अपना चोला और पूजा का अधिकार अपने भांजे को दिया। इस तरह की बहन भाई की समाधि और भाई बहन का अटूट प्रेम सालासर धाम के अलावा पूरे विश्व में शायद ही देखने को मिले। इसलिए आप जब भी यहां आए यहां अवश्य दर्शन के लिए आए। ये दर्शन एक शक्ति प्रदान करता है जो संकट आदि को हर लेता है। यहां प्रतिदिन मोहन दास जी की मंगल स्तुति भी गायी जाती है।
सालासर बालाजी की धूनी
माना जाता है कि अगर सालासर बालाजी सरकार है तो ये धूनी सुप्रीम कोर्ट है। इस धूनी पर धोक लगाए बिना यात्री की यात्रा सफल नहीं मानी जाती। यहां की व्यवस्था ऐसी है कि मंदिर में आने से पहले धोक लगाओ और जाते समय धूनी को प्रणाम करो। इस धूनी की भभूत हजार बीमारियों और रोगों की संजीवनी मानी जाती है।
जो कोई भक्त इस भभूत को श्रद्धा से लेता है तो हजार प्रकार के रोग और पाप कटते हैं, मन शांत होता है। बहुत से लोग लोहे की कील ले कर आते हैं और इस धूनी के चारों ओर घुमाकर अपने घर ले जाकर चारो कोनों में गाड़ देते हैं। बताया जाता है कि इससे घर में एक सकारात्मकता आती है।भक्त इस धूनी मे प्रसाद का भोग लगाते हैं और इसकी परिक्रमा करते हैं एवं यहां की भभूत प्रसाद स्वरूप अपने घर ले जाते हैं।
सालासर बालाजी कैसे पहुंचे
राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम द्वारा संचालित बस वगैरह आपको जयपुर, दिल्ली और बीकानेर आदि प्रमुख शहरों से मिल जाती है।
हवाई मार्ग द्वारा जयपुर आप इंडियन एयरलाइन्स और जेट एयर की फ्लाइट से सीधे पहुंच सकते हैं। जयपुर से सालासर बालाजी आप टैक्सी या बस के द्वारा 3 से 4 घंटे में पहुंचा जा सकता है।
अगर आप ट्रेन द्वारा जाने के शौकीन हैं तो यहां पहुंचने के लिए निकटतम Nearest Railway Station सुजानगढ़, सीकर, रतनगढ़ और Didwana है।