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भारत एक धर्म प्रधान देश है । यहां ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं । जहाँ ऋषि-मुनियों ने तप किया है । अल्मोड़ा में स्थित जागेश्वर धाम एक ऐसा प्रसिद्ध मंदिर है । शिव पुराण लिंग पुराण स्कंद पुराण में जागेश्वर धाम का वर्णन किया गया है । जिससे संबंधित कई पौराणिक कथाओं का उल्लेख हमें मिलता है ।
जो देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 34 किलोमीटर दूर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित है। जागेश्वर धाम को उत्तराखंड का ‘पांचवा धाम’ भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम में मुख्य रूप से शिव विष्णु शक्ति आज सूर्य देव की पूजा की जाती है ।
जागेश्वर धाम मंदिर का समय काल :
अल्मोड़ा में स्थित जागेश्वर धाम को 2000 साल पुराना बताया जाता है, परन्तु भारतीय ग्रंथों में समय काल पर विशेष विवरण नहीं मिलता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इस मंदिर के निर्माण की समयकाल को तीन भागों में बांटा गया है – कत्यूरी काल , उत्तर कत्यूरी काल और चंद्र काल ।
मंदिरों की दीवारों पर ब्राह्मी लिपि और संस्कृत शिलालेख देखने को मिलते हैं, जिसको देखकर पुरातत्वविदो ने मंदिर का निर्माण 7 से 14 सदी में हुआ होगा, ऐसा मानते हैं।
जागेश्वर मंदिर का निर्माण कैसे हुआ :
ऐसा माना जाता है , कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के सुपुत्र लव कुश ने अपने पिता से युद्ध किया था। तत्पश्चात राजा बने थे । लवकुश अपनी गलती का प्रयाश्चित करने के लिए उन्होंने यहां एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था ।
कहा जाता है, कि लव कुश ने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी। लव-कुश के समय में किए गए यज्ञ कुंड आज भी यहां विद्यमान है । पांडव, मार्कंडेय ऋषि ,रावण द्वारा जागेश्वर धाम में शिव पूजन करने का उल्लेख मिलता है । इस स्थान पर पांडवों ने निवास किया था । ऐसे साक्ष्य भी मिलते हैं ।
इस बात में कितनी सच्चाई है । यह बात अज्ञात है ,क्योंकि इसका कोई साक्ष्य प्रमाण लिखित रूप में नहीं मिलता ।
जागेश्वर धाम मंदिर की पौराणिक कथाएं :
- पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ जाने से पहले जागेश्वर धाम के दर्शन किए थे, और उन्होंने यहां कई मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं पुनः स्थापना भी की थी ।
- विद्वानों का मानना है, कि भगवान शिव अपने निवास स्थान के नीचे आकर यहां ध्यान करते थे, इसलिए यह मंदिर बाल जागेश्वर अर्थात बाल शिव को समर्पित है ।
- जागेश्वर धाम में भगवान शिव और सप्त ऋषि यों ने तपस्या की थी, इसीलिए यहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की पूजा भी की जाती है, जिसे नागेश ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है ।
- ऐसी मान्यता है, कि यहां के देवदार से वक्षों के समीप महादेव और मां पार्वती आज भी विराजमान है। भगवान शिव पार्वती के युगल रूप के दर्शन हेतु श्रद्धालु उन वृक्षों को देखने के लिए जाते हैं।
- भगवान शिव के लिए ऐसा माना जाता है,कि भगवान शिव को मृत्यु भी पराजित नहीं कर पाई इसीलिए उन्हें मृत्युंजय के नाम से संबोधित करते हैं।
- जागेश्वर धाम में स्थित नागेश्वर शिवलिंग को भगवान् शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि जागेश्वर का प्राचीन ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों का उद्गम स्थल है।
- ऐसी मान्यता है, कि 3 वर्ष 33 दिन लगातार अगर जागेश्वर महादेव के दर्शन किए जाएं, तो उस व्यक्ति की सभी कामनाएं पूर्ण होती है। इसके साथ अगर किसी कन्या के विवाह में कोई बाधा हो तो, उस कन्या को 41 दिन तक लगातार जागेश्वर महादेव के दर्शन करने चाहिए ।
- एक पौराणिक कथा के अनुसार -इस स्थान पर दक्ष प्रजापति के यज्ञ में माता सती के आत्मदाह से दुखी होकर भगवान शिव ने यज्ञ की भस्म को शरीर पर लपेटकर दारुकवन में तप किया था, इसीलिए इस जगह को शिव की तपोभूमि कहा जाता है ।
जागेश्वर धाम की वास्तुकला :
केदारनाथ शैली में अर्थात नागर शैली में बना जागेश्वर धाम की वास्तुकला बहुत सुंदर है। इस मंदिर के आसपास देवदार के बड़े-बड़े वृक्ष है। मंदिर के किनारे एक पतली सी नदी की धारा बहती है। यह मनोहारी तीर्थ स्थल है। जहां की खूबसूरती श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
यहां रुद्राभिषेक के अलावा पार्थिव पूजा, महामृत्युंजय मंत्र का जाप, शिवरात्रि पर विशेष आयोजन किया जाता है। यहां के अधिकांश मंदिरों में पत्थर के शिवलिंग स्थित है। गर्भ ग्रह के आसपास की दीवारों पर बहुत सुंदर नकाशी देखने को मिलती है।
जागेश्वर धाम के प्रमुख मंदिर :
आपको यह जानकर हैरानी होगी, कि जागेश्वर धाम में लगभग 125 मंदिर और सैकड़ों मूर्तियां स्थित है। जो यहां आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
यहां के प्रसिद्ध मंदिरों : –
1 चंडी का मंदिर 2 दंडेश्वर मंदिर 3 कुबेर मंदिर
4 मृत्युंजय मंदिर 5 नवगढ़ मंदिर 6 एक पिरामिड मंदिर 7 सूर्य मंदिर 8 नवदुर्गा मंदिर
9 माता पार्वती का मंदिर 10 हनुमान मंदिर
इन सब मंदिरों में महामृत्युंजय मंदिर सबसे प्राचीन है। दंडेश्वर मंदिर जागेश्वर धाम का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। इन सब मंदिरों में 108 मंदिर भगवान शिव और 16 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित है।
जागेश्वर मंदिर कैसे जाएं :
उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा जिले से निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। यात्रीगण काठगोदाम तक आकर वहां से बस या टैक्सी के द्वारा जागेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से जागेश्वर मंदिर 2 घंटे की दूरी पर है ।
जागेश्वर मंदिर आने के लिए सड़क मार्ग भी अच्छा बना हुआ है । यात्रीगण अल्मोड़ा के रास्ते बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर आ सकते हैं ।
इसके अतिरिक्त दिल्ली से जागेश्वर धाम 417 किलोमीटर है । यात्रीगण फ्लाइट के द्वारा उत्तराखंड आकर वहां से मंदिर तक के लिए टैक्सी कर सकते हैं ।
यदि आप दिल्ली से बस के द्वारा जागेश्वर धाम आना चाहते हैं , तो दिल्ली में आनंद विहार और कश्मीरी गेट से आपको अल्मोड़ा तक के लिए बस मिल जाएगी । फिर आप 35 किलोमीटर का रास्ता अपनी निजी टैक्सी करके पूरा कर सकते हैं ।
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