कटारमल सूर्य मंदिर : सूर्य देव का एक पवित्र आध्यात्मिक केंद्

भारतीय सांस्कृतिक विरासत का आध्यात्मिक केंद्र कटारमल सूर्य मंदिर भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है।  जो उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 18 किलोमीटर दूर  स्थित है। जो अंधेरी सुनार गाँव में बना हुआ है। भारत का पहला बड़ा सूर्य मंदिर उड़ीसा के कोर्णाक का सूर्य मंदिर है।

कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण:

कटारमल सूर्य मंदिर छठी से नवी शताब्दी में बनाया गया था । सूर्य मंदिर समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जिसे कत्यूरी शासक कटारमल देर में बनाया था। ऐसा कहा जाता है, कि यहां एक कालनेमि नाम का राक्षस था । जिसके अंत के लिए भगवान सूर्य का आह्वान किया गया था । भगवान सूर्य  लोगों की रक्षा के लिए आये और  राक्षस का विनाश किया था।

 तब से सूर्य देव यहां एक बरगद के वृक्ष में विराजमान है। तब से इस स्थान को  बड़ आदित्य के नाम से जाना जाता है। कटारमल सूर्य मंदिर में भगवान बड़ आदित्य की प्रतिमा पत्थर या धातु की नहीं है , बल्कि बड़ के पेड़ों की लकड़ी से बनी हुई है। जो गर्भ ग्रह में स्थापित है।

कटारमल सूर्य मंदिर एक वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है। जिसकी गणना सबसे ऊंचे मंदिरों में की जाती है। इस मंदिर का शिखर को देखकर इस मंदिर की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है। मुख्य मंदिर के आसपास 40 से 45 छोटे बड़े मंदिर हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर उच्च कोटि की काष्ठ कला के नमूने देखने को मिलते हैं। मंदिर की रचना नागर शैली में की गई है ।

पद्मासन मुद्रा में सूर्य देव की प्रतिमा :

कटारमल सूर्य मंदिर में विराजमान सूर्य देव की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में बनी हुई है। यह प्रतिमा 1 मीटर लंबी और लगभग 1 मीटर चौड़ी है। सूर्य देव की प्रतिमा भूरे रंग के पत्थरों से बनाई गई है।

 कटारमल सूर्य मंदिर की झलक आंशिक रूप से कोणार्क के सूर्य मंदिर मिलती हुई है। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति को सूर्य देव की उपासना का पर्व बड़े हर्षोल्लास से यहां मनाया जाता है। यहाँ लोग बहुत दूर दूर से दर्शन के लिए आते है ।

मंदिर से जुड़ी मान्यता :

पौराणिक ग्रंथों में ऐसा माना जाता है, कि जब उत्तराखंड में ऋषि मुनि ध्यान लगा रहे थे । तब एक असुर ने उनके ऊपर कई अत्याचार किए, उस समय द्रोणागिरी पर्वत और कंजर पर्वत के ऋषि-मुनियों ने कोसी नदी के निकट भगवान सूर्य देव की स्तुति की थी। उन से प्रसन्न होकर उन्होंने अपने दिव्य तेज को वटशिला पर स्थापित किया था। उसके बाद वटशीला पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया गया ।

भगवान सूर्य को ‘जगत की आत्मा’ कहा जाता है, क्योंकि सूर्य देव से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य को नव ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है। सारे देवताओं में सिर्फ सूर्यदेव हैं, जो कलयुग में दृश्य रुप में देखे जाते है।

इस मंदिर की खास बात यह है, कि प्रातःकाल सूर्य की पहली किरण मुख्य मंदिर के अंदर सूर्य देव की प्रतिमा पर सीधी पड़ती है। जो वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत है।

ऐसा कहा जाता है, कि 10 वीं सदी में इस मंदिर में एक चोरी हुई थी। जिसके बाद नकाशीदार लकड़ी के दरवाजों को दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय में भेज दिया गया था।

कटारमल सूर्य मंदिर आने का सही समय

यदि आप उत्तराखंड में कटारमल सूर्य मंदिर के दर्शन के लिए आना चाहते हैं, तो मार्च से जून तक का समय यहां दर्शन हेतु उपयुक्त है।

यदि आप सर्दियों के मौसम में यहां आते हैं, तो उसकी ज्यादा व्यवस्था करते हुए यहां आए, क्योंकि यहां का मौसम बहुत ठंडा होता है। सर्दियों से थोड़ा पहले या फिर बरसात के मौसम के बाद ‘अक्टूबर – नवंबर’के महीने में मंदिर आना अच्छा है ।

कटारमल सूर्य मंदिर कैसे जाएं :

कटारमल सूर्य मंदिर आने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है। हवाई अड्डा हल्द्वानी से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर है। हल्द्वानी से अल्मोड़ा तक की दूरी 85 किलोमीटर है। आप हवाई अड्डे से टैक्सी क्या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

अल्मोड़ा से निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। यात्रीगण काठगोदाम रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

 मंदिर आने के लिए सड़क मार्ग भी बना हुआ है। आप हल्द्वानी होते हुए ‘भीमताल बाबा नीम करोली जी भवाली’ के दर्शन करते हुए अल्मोड़ा के रास्ते करावल सूर्य मंदिर पहुंच सकते हैं।

यदि आप दिल्ली से यात्रा करके कटारमल सूर्य मंदिर आना चाहते हैं, तो फ्लाइट करके पंतनगर एयरपोर्ट तक आ सकते हैं।

इसके अतिरिक्त आप काठगोदाम रेलवे स्टेशन तक आकर टैक्सी या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं। दिल्ली में आपको आनंद विहार बस स्टैंड से अल्मोड़ा तक की डायरेक्ट बस भी मिल जाएगी।  फिर आप अल्मोड़ा से टैक्सी करके मंदिर पहुंच सकते हैं। अल्मोड़ा से कटारमल सूर्य मंदिर तक की दूरी 382 किलोमीटर होगी ।

अल्मोड़ा के कटारमल सूर्य मंदिर की रोचक दृश्य मुख्य :

मंदिर परिसर:  मंदिर परिसर कटारमल सूर्य मंदिर का मुख्य केंद्र है। जिसकी स्थापत्य कला अद्भुत है। पत्थर की दीवारों पर की गई  नक्काशी यात्रीगण का मन मोह लेती है।

मंदिर का शिखर : सूर्य मंदिर का शिखर इतना प्रभावशाली है, जो एक विशेष शिल्प कला और स्थापत्य कला का जीवन तो उदाहरण है।

 मंडप : मंदिर परिसर में एक मंडप है, जो भक्तों के लिए एक हॉल का कार्य करता है। मंडप में जटिल नकाशीदार खंबे है। एक ऊंचा मंच है। जहां अनुष्ठान कार्य एवं समारोह होते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से यहां समय बताने पर बहुत शांति मिलती है।

प्राकृतिक परिवेश : कटारमल सूर्य मंदिर का निकटतम प्राकृतिक दृश्य बहुत हरा भरा एवं शांत वातावरण है। जिसकी सुंदरता भक्तों को मोहित कर देती है।

अन्य मंदिर : सूर्य मंदिर के भीतर अन्य विभिन्न देवी-देवताओं के छोटे मंदिर मिल जाएंगे । जिसमें भगवान शिव, भगवान विष्णु और देवी महिषासुरमर्दिनि को ये मंदिर समर्पित है।

इन मंदिरों का एक धार्मिक महत्व भी है। मंदिर की वास्तुकला भी अनूठी है। यदि आप कटारमल सूर्य मंदिर का भ्रमण करते हैं, तो इसके आसपास का वातावरण , इतिहास ,मंदिर का वास्तु शिल्प, आध्यात्मिक सौंदर्य एवं मंदिर की आकर्षक मान्यताएं आपको मंदिर की ओर आकर्षित करती हैं। वर्तमान मे इस मंदिर की देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही है ।

By JP Dhabhai

Hi, My name is JP Dhabhai and I live in Reengus, a small town in the Sikar district. I am a small construction business owner and I provide my construction services to many companies. I love traveling solo and with my friends. You can say it is my hobby and passion.

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