राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित खेजड़ली गांव एक ऐतिहासिक स्थल है। यह गांव 1730 में खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए 363 बिश्नोई लोगों के बलिदान के लिए जाना जाता है। इन शहीदों की याद में हर साल भादो मास की दशमी को खेजड़ली मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन है।
इस वर्ष विश्व का एकमात्र वृक्ष‌ मेला जोधपुर के खेजड़ली गांव में 25 सितंबर को भरेगा। यह अमृता देवी बिश्नोई की अगुवाई में हुए अहिंसात्मक आंदोलन में वृक्षों को बचाने के लिए शहीद होने वाले 363 लोगों के बलिदान की याद में सोमवार को खेजड़ली गांव में मेला भरेगा। मेले की पूर्व संध्या खेजड़ली बलिदान स्थल पर रात्रि जागरण का आयोजन किया जा रहा है। मेले वाले दिन सुबह हवन व पाहल का आयोजन किया जाएगा। जिसमें आहुति देने देश के कौने कौने से हजारों हजार बिश्नोई जन व पर्यावरण प्रेमी खेजड़ली को नमन करने आएंगे।

मेले का इतिहास


1730 में, जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने खेजड़ली के पास एक नए महल का निर्माण करने के लिए खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया। यह आदेश बिश्नोई समाज के लिए एक गंभीर चुनौती थी, क्योंकि वे पेड़ों की पूजा करते हैं और उन्हें धरती पर भगवान का प्रतिनिधि मानते हैं। अमृता देवी बिश्नोई, एक युवा महिला और बिश्नोई समाज की नेता, ने महाराजा के आदेश का विरोध करने का फैसला किया। उन्होंने अपने गांव के लोगों से अपील की कि वे पेड़ों की रक्षा के लिए तैयार रहें।
महाराजा के सैनिकों ने जब पेड़ों को काटना शुरू किया, तो अमृता देवी और उनके अनुयायियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। सैनिकों ने अमृता देवी और उनके बच्चों को मार डाला। फिर, गांव के अन्य लोगों ने भी अपने प्राणों की बाजी लगा दी और पेड़ों को बचाने के लिए अपने सिर काट दिए। अमृता देवी और 362 अन्य बिश्नोईों की शहादत ने पूरे भारत में क्रांति ला दी। यह घटना पर्यावरण संरक्षण के लिए एक प्रेरणादायक कहानी है।

मेले का मुख्य आकर्षण


खेजड़ली मेले का मुख्य आकर्षण अमृता देवी और 362 अन्य शहीदों की याद में बनी स्मारक है। स्मारक में एक विशाल स्तंभ है, जिस पर शहीदों के नाम लिखे हुए हैं। स्मारक परिसर में एक मंदिर भी है, जहां शहीदों की पूजा की जाती है। इस मेले का मुख्य आकर्षण सोने के गहनों से लकदक होकर पहुंची महिलाएं रही। कई महिलाएं एक किलोग्राम सोने के गहने तक पहन कर पहुंची। खास बात यह है कि इतने सारे गहने पहनकर जंगल में जाती इन महिलाओं के साथ आज तक कोई लूटपाट की घटना नहीं हुई। इस बार भी ऐसा ही नजारा यहां देखने को मिला।
मेले के दौरान, बिश्नोई समाज के लोग अपने पारंपरिक परिधानों में शामिल होते हैं। वे पेड़ों की पूजा करते हैं और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेते हैं।
मेले में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इनमें लोकगीत, नृत्य और संगीत शामिल हैं। मेले में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ और सामान भी बेचे जाते हैं।

मेले की तिथि और समय


खेजड़ली मेला हर साल भादो मास की दशमी को आयोजित किया जाता है। यह तिथि सितंबर महीने के अंत या अक्टूबर महीने की शुरुआत में पड़ती है।

मेले की जगह
खेजड़ली मेला जोधपुर के खेजड़ली गांव में आयोजित किया जाता है। जोधपुर से खेजड़ली की दूरी लगभग 26 किलोमीटर है।

नजदीकी हवाई अड्डा
खेजड़ली का निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जोधपुर से खेजड़ली जाने के लिए बस, टैक्सी या ट्रेन के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

विश्राम की व्यवस्थाएं


खेजड़ली में विश्राम के लिए कई होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। जोधपुर में भी कई होटल और रिसॉर्ट हैं, जहां मेले के दौरान रुक सकते हैं।

निष्कर्ष


खेजड़ली मेला एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण आयोजन है। यह मेला पर्यावरण संरक्षण के लिए एक प्रेरणादायक कहानी है। इस मेले में शामिल होकर, आप पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझ सकते हैं और इसके लिए संकल्प ले सकते हैं।

अतिरिक्त जानकारी


खेजड़ली मेला राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। इस मेले को “वृक्ष मेला” के नाम से भी जाना जाता है। इस मेले को 2016 में भारत सरकार ने “अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण मेला” के रूप में मान्यता दी थी। खेजड़ली मेला एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का आयोजन है। यह मेला हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है

By JP Dhabhai

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